अतिरिक्त >> सच्चा विश्वास सच्चा विश्वासदिनेश चमोला
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इसमें सत्य की राह पर चलने वाले एक मनुष्य पर आधारित कहानी का वर्णन किया गया है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
आखिरी इच्छा
बरगद के पेड़ पर एक तोता और एक कौवा रहते थे। दोनों में बहुत प्रेम था।
दोनों के माता-पिता मर चुके थे क्योंकि पिछली गर्मियों में सुन्दर-वन में
आम के पेड़ में आग लग गई थी। दोनों ही भाग्यवश आग में झुलसते हुए बच निकले
थे। कौवे का नाम शालू था और तोते का हीरामन। शालू हीरे से कुछ बड़ा था।
शालू ने हीरे से कहा—
‘‘हीरा भैया ! अब हमें सुन्दर-वन छोड़ देना चाहिए। यहाँ अब हमारा कुछ भी तो नहीं है। पास ही के बरगद पर मेरे नीलू मामा रहते है। वे हमें सहारा अवश्य देंगे और तब तक हमारे झुलसे पंख भी ठीक हो जायेंगे।’’
‘‘ठीक है शालू भैया ! माँ में भी उस रात कहा था कि उस बरगद पर हमारे कई हितैषी रहते हैं। कल मिलाने को भी कहा था—लेकिन माँ कैसे मिलती ? माँ तो पहले ही...’’ यह कहते ही हीरामन की आंखों से पानी की धार चू पड़ी।
अब दोनों प्रेम से बरगद पर रहते। सुबह होते ही दोनों दूर के समतल में चारे की तलाश में उड चलते। झीलों का ठण्डा पानी पीते। सायं होती तो अपने आवास को आ लौटते। कभी शालू अस्वस्थ होता तो हीरा चारा समेट उसकी खूब सेवा टहल करता । शालू प्रेम के आँसू बहा उसका धन्यवाद करता।
बरगद पर रहने वाले और जीवों को उनकी यह मित्रता खलने लगी। एक दिन हीरा चारे की खोज में दूर-दराज के खेतों में गया था तो शालू के पास एक बड़ा जंगली कौवा आकर कहने लगा—‘‘नमस्ते शालू भैया, बहुत दिन हो गए, तुमसे मिलने की इच्छा थी। सुना है कि तुम एक तुच्छ तोते के साथ रह रहे हो। हमारा एक—‘कौवा विकास संघ’’ है, जिसमें हमारी जाति वंश और गौरव को कायम रखा जाता है। जंगल के सभी छोटे जीवु हमारे सेवक है और तुम सेवक से दोस्ती किए बैठे हो ? यह हमारे लिए बहुत शर्म की बात है।’’
‘‘नहीं, मैं अपने मित्र को नहीं छोड़ सकता।’’‘ शालू ने दृढ़ता से कहा।
‘‘अरे मूर्ख ! तुम्हें पता है वह सभी से तुम्हारी चुगलियाँ करता रहता है कि घर बैठे-बैठे सभी कुछ हजम कर जाता है। उसने तो तुम्हें मारने तक की योजना बना रखी है। तुम इतने भोले हो कि समझते तक नहीं।’’ कौवे ने विश्वास दिलाते हुए कहा।
‘‘हीरा भैया ! अब हमें सुन्दर-वन छोड़ देना चाहिए। यहाँ अब हमारा कुछ भी तो नहीं है। पास ही के बरगद पर मेरे नीलू मामा रहते है। वे हमें सहारा अवश्य देंगे और तब तक हमारे झुलसे पंख भी ठीक हो जायेंगे।’’
‘‘ठीक है शालू भैया ! माँ में भी उस रात कहा था कि उस बरगद पर हमारे कई हितैषी रहते हैं। कल मिलाने को भी कहा था—लेकिन माँ कैसे मिलती ? माँ तो पहले ही...’’ यह कहते ही हीरामन की आंखों से पानी की धार चू पड़ी।
अब दोनों प्रेम से बरगद पर रहते। सुबह होते ही दोनों दूर के समतल में चारे की तलाश में उड चलते। झीलों का ठण्डा पानी पीते। सायं होती तो अपने आवास को आ लौटते। कभी शालू अस्वस्थ होता तो हीरा चारा समेट उसकी खूब सेवा टहल करता । शालू प्रेम के आँसू बहा उसका धन्यवाद करता।
बरगद पर रहने वाले और जीवों को उनकी यह मित्रता खलने लगी। एक दिन हीरा चारे की खोज में दूर-दराज के खेतों में गया था तो शालू के पास एक बड़ा जंगली कौवा आकर कहने लगा—‘‘नमस्ते शालू भैया, बहुत दिन हो गए, तुमसे मिलने की इच्छा थी। सुना है कि तुम एक तुच्छ तोते के साथ रह रहे हो। हमारा एक—‘कौवा विकास संघ’’ है, जिसमें हमारी जाति वंश और गौरव को कायम रखा जाता है। जंगल के सभी छोटे जीवु हमारे सेवक है और तुम सेवक से दोस्ती किए बैठे हो ? यह हमारे लिए बहुत शर्म की बात है।’’
‘‘नहीं, मैं अपने मित्र को नहीं छोड़ सकता।’’‘ शालू ने दृढ़ता से कहा।
‘‘अरे मूर्ख ! तुम्हें पता है वह सभी से तुम्हारी चुगलियाँ करता रहता है कि घर बैठे-बैठे सभी कुछ हजम कर जाता है। उसने तो तुम्हें मारने तक की योजना बना रखी है। तुम इतने भोले हो कि समझते तक नहीं।’’ कौवे ने विश्वास दिलाते हुए कहा।
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